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समाज में प्रतिमान बनने के लिए भीड़ से अलग बनने का गुर सीखना होगा : प्रो. पूनम टण्डन

महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ में 17वां समावर्तन संस्कार समारोह के आयोजन में मुख्य अतिथि ने कहा कि ज्ञान-विज्ञान के साथ चरित्र से बना व्यक्ति ही सफलता की ऊंची से ऊंची सीढ़ियों पर आगे बढ़ता जाता है। ज्ञान का सही अर्थ उसके उपयोग में हैे, न कि उसके अर्जन में। वास्तव में युवाओं का असली सामाजिक जीवन शिक्षा प्राप्ति के पश्चात ही प्रारम्भ होता है। विद्यार्थी अपने शैक्षिक जीवन में अर्जित सद्ज्ञान से ही समाज एवं राष्ट्र निर्माण में अपना महती योगदान कर सकता है। हमें यह समझना होगा कि सूरज की तरह चमकना है तो उसी की तरह तपना होगा, जगना होगा और लगातार चलना होगा। यह बातें उक्त बातें महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़, गोरखपुर के 17वें समावर्तन संस्कार समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर के कुलपति प्रो. जय प्रकाश सैनी ने कही। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि शिक्षा, ज्ञान एवं संस्कार प्राचीन काल से ही भारतीय समाज के तीन प्रमुख स्तम्भ रहे हैं। ज्ञान, मेधा, सदाचरण और सच्चरित्रता का महत्व अनादि काल से भारतीय समाज में देखने को मिलता है। शिक्षा का आधार भाषा और ज्ञान का आधार संस्कार है। प्रो. सैनी ने कहा कि वस्तुतः शिक्षा और ज्ञान ही व्यक्ति का वास्तविक धन होता है। यह वह बोधन है जिसका किसी भी परिस्थिति में क्षरण नहीं हो सकता है। ज्ञान-विज्ञान के बढ़ते आयामों के साथ आज यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अपनी संस्कृति एवं संस्कारों को संजोकर रखें। समावर्तन संस्कार का मूल भी हमें अपनी संस्कृति एवं संस्कारों से जोड़े रखना है। आज के बदलते हुए परिवेश में विद्यार्थियों का यह कर्तव्य भी है कि वो इस बदलते हुए सामाजिक परिवेश के साथ अपने ज्ञान आधारित सामन्जस्य को बेहतर तरीके से स्थापित करें। विद्यार्थी जीवन की सफलता इस तथ्य में निहित है कि वो अपने अर्जित ज्ञान के आधार पर समाज के उन्नयन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। उन्होंने कहा कि शिक्षा हमें जीवन की आगामी चुनौतियों के लिए तैयार करती है समसामयिक विमर्शों से अपने को सम्बद्ध करने हेतु युवाओं को संयमित रूप अनुशासन का पालन करना ही होगा। जीवन में सर्वश्रेष्ठ की प्राप्ति तभी संभव है, जब आन्तरिक तथा वाह्य के मध्य संतुलन स्थापित किया जाए। अतः हमारी प्रकृति में सहजता एवं संतुलन का अनन्य समन्वय होना चाहिए। आज का यह सामवर्तन संस्कार हमें उसी परम्परा से जोड़ता है। समावर्तन हमे इस रूप में दीक्षित करता है कि हमें अपने समस्त ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्दियों को अनुशासिक कर सद् आचरण कर सकें। समावर्तन में समस्त मूल्यों का भारतीय सस्कृति अपने में आत्मसात किए हुए है जो मानवता, परोपकार एवं विश्वकल्याण की भावना से ओत-प्रोत है।

प्रो. सैनी ने महाराणा प्रताप महाविद्यालय के इस समारोह की मुक्तकंठ से सराहना की और कहा कि इस महाविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को बहुत पहले से आत्मसात कर रखा है। वस्तुतः यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की प्रयोगशाला है जिसके निष्कर्ष अन्य संस्थानों के लिए भी मार्गदर्शक बन रहे हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर, विश्वविद्यालय गोरखपुर की कुलपति प्रो. पूनम टण्डन ने कहा कि जीवन में कोई भी लक्ष्य हासिल करना असंभव नहीं है। परिश्रम, चरित्र और स्पष्ट दृष्टि से ऊंची से ऊंची उड़ान भरी जा सकती है। समाज में प्रतिमान बनने के लिए विद्यार्थियों को भीड़ से अलग बनने का गुर सीखना होगा।
प्रो. पूनम टण्डन ने कहा कि गोरखपुर समेत पूरे पूर्वांचल की शिक्षा व्यवस्था को परिष्कृत, परिमार्जित एवं उप्तरोत्तर विकास के पथ पर अग्रसर करने में युगपुरूष ब्रहमलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज द्वारा स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की भूमिका अविस्मरणीय है। नाथपंथ का समग्र दर्शन वास्तव में शिक्षा एवं ज्ञान के आधार पर समाज का कल्याण करने वाला श्रेष्ठ दर्शन है। आज के शिक्षण संस्थानाओं का यह परम कर्तव्य है कि वो न सिर्फ किताबी ज्ञान से युक्त अपितु संस्कार आधारित शिक्षा, श्रेष्ठ जीवन मूल्य एवं आदर्शों से ओत-प्रोत जीवनोपयोगी गुणों से परिपूर्ण ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण करें, जो समाज को सही दिशा दे सकें। इस दृष्टि से महाराणा प्रताप महाविद्यालय अत्यन्त सजगता एवं जिम्मेदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए एक आदर्श शिक्षा केन्द्र के रूप में विकसित होने की दिशा में अग्रसर हो रहा है।
उन्होंने कहा कि आज के इस भौतिकवादी युग में जब मानव मूल्यों का क्षरण तेजी से हो रहा है, आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के दौर में जब समाज का इमोशनल इटेलीजेंस कम होता जा रहा है, ऐसे में ऐसे श्रेष्ठ शिक्षा संस्थान से मूल्यपरक शिक्षा ग्रहण कर अपना सामाजिक जीवन प्रारम्भ करने जा रहे आज विद्यार्थियों की जिम्मेदारी अत्यन्त महत्वपूर्ण बन गई है। डिग्री प्राप्त करने के साथ-साथ स्किल डेवलपमेन्ट करना भी हमारा उद्देश्य होना चाहिए। हम सभी को अपना-अपना यूनिक स्किल प्वाइन्ट (यूएसपी) विकसित करना चाहिए।

समारोह में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव ने प्रस्ताविकी रखते हुए कहा कि महाविद्यालय संस्कार आधारित शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है। यह महाविद्यालय पूज्य गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी के सपनो का महाविद्यालय है, ऐसे में समाज के प्रति हमारी जवाबदेही और जिम्मेदारी है कि हम महाविद्यालय में संस्कृति और संस्कार युक्त ऐसे क्षमतवान युवाओं का सृजन करें, जो समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए सामाजिक विकास में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति : 2020 के कुछ प्रावधानों को अपने संस्थागत सामाजिक दायित्वों के अन्तर्गत 2012 से ही लागू कर अपनी दूरदृष्टता का प्रमाण दे चुका है। आगे भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों को पूर्णतः लागू करने के लिए महाविद्यालय अपने पूर्ण मनोभावों के साथ प्रयासरत रहेगा।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में गोरखपुर महानगर की पूर्व महापौर श्रीमती अंजू चौधरी एवं महाविद्यालय के पुरातन छात्र परिषद् के सदस्य धीरज कुमार बरनवाल भी उपस्थित रहे। संचालन महाविद्यालय के रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग के प्रभारी रमाकान्त दूबे ने किया। इस अवसर पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के सहित महानगर के विविध शिक्षण प्रशिक्षण संस्थानों के आचार्यगण तथा प्रतिष्ठित नागरिक उपस्थित रहे।

*समारोह ये विद्यार्थी हुए सम्मानित*
समावर्तन संस्कार समारोह में जीवन मूल्य प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम के श्रेष्ठतम विद्यार्थी का महायोगी गोरखनाथ सम्मान कीर्ति राय को, हमारे पूर्वज प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम के श्रेष्ठतम विद्यार्थी का महंत दिग्विजयनाथ सम्मान आशीर्वाद कश्यप को, सिलाई कढ़ाई एवं पेन्टिंग प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम के श्रेष्ठतम विद्यार्थी का योगिराज बाबा गम्भीरनाथ सम्मान ज्योति भारती को, निःशुल्क कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम के श्रेष्ठतम विद्यार्थी का चेतक सम्मान दिया गया।

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